किसी भी समाज का विकास एवं विस्तार उनके अतीत से जुडा हुआ होता है । अतीत और वर्तमान के बीच के समय का अंकलन करता है इतिहास, ऐसा ही एक इतिहास तेरापंथ समाज उधना का है ।
एक बीज से प्रारंभ हुआ तेरापंथ समाज, उधना आज वट वृक्ष की तरह सामने है ।
- पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी 1967 में मुंबई चातुर्मास के लिए पधारे तब सूरत प्रवास के बाद करीब 10 दिसम्बर 1967 को एक रात्रि का प्रवास उधना में रूपचंदभाई वकील वाला की फेक्ट्री अशोक मेकटुल्स रोड नं 14 पर बिराजना हुआ ।
पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी - एक रात्रि का प्रवास उधना में
- सन् 1974 में साध्वी श्री रायकंवरजी का उधना बिराजना हुआ, उस समय सभी परिवारों की मिटिंग हुई उसमें तेरापंथ युवक संघ की स्थापना हुई एवं स्थापक अध्यक्ष श्री सुवालालजी बोल्या एवं मंत्री श्री लक्ष्मीलालजी बाफना को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ । यह था विकास का प्रथम चरण ।
- सन् 1975 में मुनि श्री सुखलालजी स्वामी का सूरत दीपचन्द निवास में चातुर्मास हुआ उसके पहले मुनि श्री उधना एवं आसपास के क्षेत्रों में पधारना हुआ, मुनि श्री की प्रेरणा से परिवारों में अधिक जागृति आई, करीब 35-40 परिवार उधना विस्तार में हो चुके थे ।
- मुनि श्री की प्रेरणा से उस समय गुजराती भाषा में अणुव्रत-नैतिक विकास की आचार संहिता एवं आत्म स्मृति, इस प्रकार दो लधु पुस्तिकाएँ छपवाई, जिसमें तेरापंथ युवक संघ उधना के 38 परिवारों की नामावली है।
उधना में धर्मसंध के बढ़ते चरण
- इस समय सामुहिक धर्मोपासना के लिए एक जगह लेने का चिन्तन चला । चोर्यासी तालुका मामलतदार श्री मणीभाई अमीन से अच्छे संपर्क होने के कारण उनके प्रशासनिक सहयोग से उधना तीन रास्ते के पास उधना नगर पंचायत से एक 40 × 50 का भुखण्ड तेरापंथ समाज के भवन के लिए टोकन कीमत से खरीदा गया (कीमत 5000 रूपये) धीरे धीरे केवल उधना के 50-60 परिवारों के सहयोग से वहां भवन बनाया गया ।
उधना मेइन रोड़ भवन की जगह खरीद एवं निर्माण
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सन् 1980 के आसपास के समय समाज के वरिष्ठ श्रावक श्री सुवालालजी बोल्या एवं लक्ष्मीलालजी बाफना का यह चिन्तन रहा कि क्यों नही अपने परिवारों के रहने के लिए एक आवासीय सोसायटी बनाई जाए । उधना गाँव के बडे खेडुत श्री ठाकोरभाई वशी के संपर्क के कारण उनका एक भुखण्ड(खेत) लेकर प्लोटिंग कर केवल मेवाड़ के जैन परिवारों को रियायत रेट पर प्लोट दिये गये । उक्त सोसायटी में 3 प्लोट श्री शंकरलालजी, सुवालालजी बोल्या एवं श्री लक्ष्मीलालजी, दिनेशचन्द्रजी बाफना परिवार की तरफ से तेरापंथ समाज को डोनेट किये गये । जहां अभी विशाल तेरापंथ भवन बना हुआ है ।
चन्दनवन सोसायटी का निर्माण एवं सोसायटी में भवन निर्माण
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सन् 1986 में जब मुनि श्री पूनमचंदजी स्वामी मुंबई से सूरत पधार रहे थे उनका चातुर्मास सूरत घोषित था, लेकिन सूरत पंचमी समिति के लिये दूर जाना पडता था। बरसात के समय विशेष तकलीफ होती थी, तो कुछ चिन्तन आया कि उधना चातुर्मास हो सकता है, लेकिन भवन छोटा है, यह समस्या सामने आई । उधना के परिवारों मे चिन्तन चला जगह के विषय में, उस समय मेवाड़ साजनान समाज ने एक भूखण्ड ले रखा था, वहां भवन बनाने का चिन्तन भी चल रहा था । सुवालालजी ने प्रयास किया अगर भवन बन जायेगा, तो हो सकता है चातुर्मास में काम आयेगा अतः समाज में निर्णय कर कार्य प्रारम्भ कर दिया एवं 3-4 महिने में भवन बन कर तैयार हो गया । मेवाड़ भवन तैयार हो जाने से सूरत समाज ने मुनि श्री पूनमचंदजी स्वामी का चातुर्मास उधना में करने की स्वीकृति दे दी । यह था उधना का प्रथम चातुर्मास, श्रद्धेय मुनि श्री पूनमचंदजी स्वामी के सानिध्य मेंं चातुर्मास काल में धर्म आराधना के सभी कार्यक्रम बहुत अच्छे सम्पन्न हुए । मुनि श्री का बिराजना मेवाड़ भवन के सामने मिठालालजी बाफना के मकान में, व्याख्यान मेवाड़ भवन में ।
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पश्चिमांचल श्रावक सम्मेलन
मुनि श्री पूनमचंदजी स्वामी के चातुर्मास में पश्चिमांचल श्रावक सम्मेलन का बृहद कार्यक्रम हुआ, जिसमें मुंबई, अहमदाबाद, जलगांव एवं पूरे पश्चिमांचल के वरिष्ठ श्रावको का पधारना हुआ।
मुनि श्री पूनमचंदजी स्वामी का चातुर्मास
- प्रति वर्ष सूरत, उधना एवं आसपास के परिवारों की संख्या बढती गई । साधु-साध्वियों के सूरत चातुर्मासो में संवत्सरी पर्व सूरत में अन्य समाज के भवन भी छोटे पडने लगे । तब सूरत सभा में चिन्तन चला कि उधना में भवन की जगह में अगले वर्ष का पर्युषण पर्व का कार्यक्रम किया जाये । सन् 1993 में साध्वी श्री चांदकुमारीजी (लाडनूं) का चातुर्मास तेरापंथ भवन - रंगीलदास मेहता की शेरी में था । उस वर्ष का पर्युषण पर्व का पूरा कार्यक्रम उधना में रहा । व्यवस्थित कार्यक्रम चले, संवत्सरी का कार्यक्रम भी अच्छी तरह सम्पन्न हो गया ।
साध्वी श्री चांदकुमारीजी के सूरत चातुर्मास का पर्युषण पर्व का कार्यक्रम उधना में
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अब धीरे-धीरे उधना समाज ने भी चातुर्मास की अर्ज चालु की एवं सन् 1994 में गुरूदेव ने महत्ती कृपा कर विदुषी साध्वी श्री फूलकुमारीजी (लाडनूं) का चातुर्मास उधना फरमाया । उस समय सूरत में साध्वी श्री कनकश्रीजी (लाडनूं) एवं बारडोली में साध्वी श्री रतनश्रीजी (लाडनूं) का चातुर्मास था । साध्वी श्री फूलकुमारीजी (लाडनूं) का चातुर्मास वरिष्ठ श्रावक श्री शंकरलालजी बोल्या के बंगले में साध्वीवृन्द का बिराजना रहा, साइड के पेसेज में सेड बनाया गया, वहां व्याख्यान होता था । एवं रविवारीय व्याख्यान एवं पर्युषण के सभी कार्यक्रम तेरापंथ भवन के प्लोट में बने सेड पर होते थे ।
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सूरत में प्लेग का उपद्रव
उस वर्ष ज्यादा वर्षा होने से सूरत शहर में पानी भर गया । प्रशासनिक शिथिलता के कारण शहर में प्लेग की बिमारी का उपद्रव हो गया । प्रायः परिवार सूरत छोडकर अपने गाँवो में चले गये । उस समय सूरत, उधना एवं बारडोली सभी जगह साध्वियों के चातुर्मास होने से पूज्य गुरूदेव ने महामारी की स्थिति को देखते हुए सूरत, उधना के दोनों सिंघाडो को बारडोली पधारने की अनुमति दी, लेकिन सूरत उधना के परिवारों की सक्रियता एवं पूर्ण जागरूकता एवं संघ निष्ठा के कारण दोनों सिंघाडो ने चातुर्मास स्थल पर ही रहना उचित समझा ।
विदूषी साध्वी श्री फूलकुमारीजी (लाडनूं) का चातुर्मास
- सन् 1996 में तेरापंथ भवन के निर्माण का चिन्तन चला, निर्णय लिया गया, सर्व प्रथम भूमि पूजन के लिए श्री बाबुलालजी कर्णावट ने सक्रियता दिखाई एवं उनके द्वारा समाज ने 20 अक्टूबर 1998 को भूमि पूजन का कार्य संपन्न किया। क्रम वाइज धीरे धीरे निर्माण का कार्य चलता रहा । पूरे समाज का पूरा सहयोग रहा, उद्घाटन के सहयोगी में समाज के कई व्यक्तियों का सहकार रहा, जिनके द्वारा मुनि श्री सुमेरमलजी स्वामी के सानिध्य में दिनांक 22 नवंबर 1998 को तेरापंथ भवन का उद्घाटन समपन्न हुआ ।
तेरापंथ भवन निर्माण में गति
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पूज्य गुरूदेव के सूरत चातुर्मास के पूर्व उधना समाज की बार-बार अर्ज को ध्यान में रखते हुऐ पूज्य गुरूदेव ने महत्ती कृपा कर दिनांक 14 जून 2003 से 1 जुलाई 2003 तक 18 दिन उधना बिराजने का फरमाया । उधना का श्रावक समाज इस समाचार से प्रफुल्लित हो उठा । गुरूदेव के प्रवास की सभी व्यवस्थाओं की जोरदार तैयारियां प्रारम्भ कर दी । पूज्यवरों का 14 जून भेस्तान, 15 जून पांडेसरा, बिराजने के पश्चात भव्य रैली के साथ उधना प्रवेश हुआ । सभी भव्य व्यवस्थाओंं के साथ गणाधिपति महाप्रयाण दिवस (अतिथी गुजरात गवर्नर श्री सुन्दरसिंह भंडारी) एवं आचार्य महाप्रज्ञ जन्मोत्सव जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम गुरूदेव के सानिध्य में संपन्न हुए ।
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अमृतवचन - पूज्यवरों के
मंगलभावना समारोह पर गुरूदेव ने अपने मुखारविन्द से फरमाया - उधना में आचार्यों के चातुर्मास जैसी व्यवस्था रही एवं उधना बहुत साताकारी स्थान है ।
पूज्य गुरूदेव आचार्य श्री महाप्रज्ञ का उधना प्रवास
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पूज्य गुरुदेव ने महत्ती कृपा कर परम विदूषी साध्वी श्री आनन्दश्रीजी का सन् 2007 का चातुर्मास उधना फरमाया । शरीर के अस्वस्थता होने बावजूद साध्वी श्री अंतिम दिन तक व्याख्यान फरमाया करते थे । सहवर्ती साध्वियों ने खूब अच्छी सेवा की । साध्वी श्री ने 3 सितंबर 2007 को दोपहर संथारे के समाधिपूर्वक नश्वर देह का त्याग किया । 4 सितंबर प्रातः 9 बजे बेकुंठीयात्रा उधना भवन से पैदल उमरा स्मशान गृह तक - यात्रा में हजारों की संख्या रही ।
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पूण्य आत्मा मुक्तिधाम
साध्वी श्री आनन्दश्रीजी की अस्वस्थता के समय समाज द्वारा उमरा स्मशान गृह समाज द्वारा "पूण्य मुक्तिधाम" नाम से सर्व धर्म पूण्य आत्माओं के लिये अग्नि संस्कार का स्थान सन् 2007 में निर्माण किया गया।
साध्वी श्री आनन्दश्रीजी का देवलोकगमन
संकलन
लक्ष्मीलाल बाफना